शुक्रवार, 15 मार्च 2013

तुम को ढूंढा है


हर      सुबह     हर    शाम    तुम   को   ढूंढा है 
 हमने,  उम्र     तमाम      तुम   को     ढूंढा    है 



हर   शहर    की      ख़ाक      छान     मारी     है 
कभी छुप के ,कभी सरे आम   तुम   को  ढूंढा है 



हर फूल,हर कली ,को  बताया  है   हुलिया    तुम्हारा  
चेहरे का हर एक निशाँ ,करके ब्यान ,तुम को ढूंढा है

  

छुपे हो जरुर तुम  किसी  और लोक में, वरना   तो 
ज़मी सारी छानी ,फिर  आसमान पे, तुम को ढूंढा है 











गुरुवार, 14 जून 2012

वो कभी







वो कभी अपना ,कभी अजनबी सा लगा 
लगा ख्वाब कभी,तो कभी यकीं सा लगा

उस को  देखते  ही  मर  मिटे  थे  हम तो 
हद है के वो  फिर  भी  जिंदगी  सा  लगा

कभी लगा के सागर हो वो गम्भीरता का 
और   कभी    सिर्फ  दिल्लगी  सा   लगा  

कभी    तो     सांस    सांस    जीया   उसे 
और    कभी    बीती  जिंदगी   सा   लगा  

उस   के  साए  में  सो   गए    हम  कभी 
और   कभी  धुप  वो  तीखी   सा    लगा 

कभी पाकर लगा उसे, पा ली कायनात सारी
और कभी वो हाथ से रेत फिसलती सा लगा

उस की आँखों में उतर कर गुम हो गए हम 
कभी वो झील सा  तो  कभी  नदी  सा लगा

(अवन्ती सिंह)

रविवार, 10 जून 2012

तुम जो कहना चाहो

तुम जो कहना  चाहो वो मेरे    लब   पे   पहले आता है 
हमारे    विचारो    का    मेल   मुझे   बहुत    भाता   है  

कितने   लोगों   का   दिल   इस    तरह   मिल  पाता  है?
तुम   से  जुदाई     का  ख्याल    भी   मुझे   सताता   है 

तुम्हारी  आँखों   में , मेरे  लिए जब    प्यार   झिलमिलाता है  
लगे ऐसा के जैसे चाँद को देख कर ,चकोर कोई कसमसाता है 

कभी ,     कहीं   जब  कोई   प्रीत    के   गीत    गुनगुनाता     है
लगे के   हमारी   दास्ताँ     दुनिया   को     वो   सुनाता    है 


तुम जो   कहना  चाहो वो  मेरे    लब   पे   पहले  आता  है 
हमारे    विचारो    का    मेल   मुझे   बहुत    भाता     है

अबोला वादा



बहुत साल पहले ,एक ढलती हुई शाम में
मेरे हाथों को थाम कर अपने हाथों में ,
अपनी अमृत छलकाती हुई आँखों से
मेरी शर्माती हुई आँखों में झांकते हुए 
तुम ने नहीं कहा ,के तोड़ लाओगे 
सितारे मेरे लिए .........
तुम ने नहीं खाईं कसमें सात जन्मों की 
बस आँखों ही आँखों में किया था एक 
बिना शब्दों का अबोला वादा, के
मेरी हर सांस को  तुम महकाओगे 
खुशियों की अनोखी महक से ......


उस के बाद, हम ने ना जाने कितने 
पतझड़ ,सावन ,बसंत, बहार के 
मौसम देखे ,आंधी और तूफानों
ख़ुशी और गम को जीया है साथ -२

पर मुझे तुम्हारी आँखों में हमेशा अडिग 
नज़र आता रहा है वो अबोला वादा 
तुम ने अपनी हर सांस में जीया है 
और   निभाया   है  उस  वादे  को 
जो तुम ने कभी कहा ही नहीं .....
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अवन्ती सिंह

नव गीत का निर्माण


तुम   यूँ     ही   मुस्कराते     रहो     मेरे     सामने    बैठ कर 
मैं   प्रीत    से   भरे     नव    गीत      का       निर्माण      करूँ  

तुम  अपने   मन   की    मधुरता    बिखरते   रहो       यूँ    ही
मैं   उस    मधुरता    से     अपने     गीतों    में      प्रेम     भरूं

अपनी आँखों  की  चमक   मुझ      तक    ऐसे   ही   पहुचने  दो
समेट कर उसे ,उस से मैं शब्दों   के  लिए    कुछ      गहने   गढ़ूं   


तुम्हारे  प्रेम   की   महक,  जो घेर रही  है  मुझे   चारों   और  से 
इस से   ही  तो   महकेगी   मेरी   ये बिना   सुगंध   की   कविता

अभी मत उठो यहाँ  से, रुको  क्या   तुम     अब   तक   नहीं समझे , 
तुम्हारे होने से ही तो बह रही है मुझ में से छन्द और बंधों की सरिता  


लो तुम हो जाने को  बेकरार  इतना ,तो   मैं   कविता   को   पूर्ण   करती   हूँ
तुम्हारे होने से इसे लिख पाई हूँ सो इस का पूरा श्रेय तुम्हे समर्पित करती हूँ 

बातें करतें है


वो जब मुझ को ना देखें तब  भी  , नजर क्यूँ   बार   बार   झुकती है ?
ह्या की लाली आके गालों  पर ,उनके    तकनें    की   राह  तकती  है

दिल में तो लाखों बातें चलती है ,जुबां तक आ  के फिर  क्यूँ रूकती है
धडकने तेज होती जाती है ,दिल     में   एक पीर   सी   भी   उठती  है

होठ थरथराते है, चुप ही  रहतें है ,उन के आगे हम 'बुत' ही रहते है
साँसें  चलना भी भूल जाती है ,नज़रें  धरती में   गड सी   जाती   है

मैं उन की खामोशियों को सुनती हूँ,वो मेरी खामोशियों को   सुनते है
रात भर नींद अब आती ही नहीं, दिन भर अब ख्वाब ,ख्वाब बुनते है

बात गर हम शुरू कर भी दें तो , दुनिया, जहाँ   की  बातें    करते  है
कौन कैसा है ,वो तो वैसा है, जाने कहाँ   कहाँ   की   बातें    करते है

अपनी बातों की बात छोड़ कर हम , धरती आसमाँ की बातें करते है
जो जरूरी है वो तो रह ही जाता है ,और हम यहाँ वहां की बातें करते है

अब जो मिलना हुआ तो कह देगें ,आओ   अब   अपनी  बातें   करते है
कैसे कटते  है दिन तुम्हारे बिन,उन , सुबह-शामों  की  बाते   करते  है......

तुम को ढूंढा है


हर      सुबह     हर    शाम    तुम   को   ढूंढा है 
 हमने,  उम्र     तमाम      तुम   को     ढूंढा    है 



हर   शहर    की      ख़ाक      छान     मारी     है 
कभी छुप के ,कभी सरे आम   तुम   को  ढूंढा है 



हर फूल,हर कली ,को  बताया  है   हुलिया    तुम्हारा  
चेहरे का हर एक निशाँ ,करके ब्यान ,तुम को ढूंढा है

  

छुपे हो जरुर तुम  किसी  और लोक में, वरना   तो 
ज़मी सारी छानी ,फिर  आसमान पे, तुम को ढूंढा है