गुरुवार, 14 जून 2012

वो कभी







वो कभी अपना ,कभी अजनबी सा लगा 
लगा ख्वाब कभी,तो कभी यकीं सा लगा

उस को  देखते  ही  मर  मिटे  थे  हम तो 
हद है के वो  फिर  भी  जिंदगी  सा  लगा

कभी लगा के सागर हो वो गम्भीरता का 
और   कभी    सिर्फ  दिल्लगी  सा   लगा  

कभी    तो     सांस    सांस    जीया   उसे 
और    कभी    बीती  जिंदगी   सा   लगा  

उस   के  साए  में  सो   गए    हम  कभी 
और   कभी  धुप  वो  तीखी   सा    लगा 

कभी पाकर लगा उसे, पा ली कायनात सारी
और कभी वो हाथ से रेत फिसलती सा लगा

उस की आँखों में उतर कर गुम हो गए हम 
कभी वो झील सा  तो  कभी  नदी  सा लगा

(अवन्ती सिंह)

7 टिप्‍पणियां:

  1. कभी तो सांस सांस जीया उसे
    और कभी बीती जिंदगी सा लगा.
    bahut hi pyara sher laga. Badhai!

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  2. ♥(¯`'•.¸(¯`•*♥♥*•¯)¸.•'´¯)♥
    ♥♥नव वर्ष मंगलमय हो !♥♥
    ♥(_¸.•'´(_•*♥♥*•_)`'• .¸_)♥



    कभी पाकर लगा उसे, पा ली कायनात सारी
    और कभी वो हाथ से रेत फिसलती-सा लगा

    उस की आँखों में उतर कर गुम हो गए हम
    कभी वो झील-सा तो कभी नदी-सा लगा

    वाह ! वाऽह ! वाऽऽह !
    क्या बात है !
    बहुत ख़ूबसूरत ...
    आदरणीया अवंती सिंह जी !
    अच्छा लिखा है ...

    # आशा है सपरिवार स्वस्थ सानंद हैं
    पोस्ट बदले हुए बहुत समय हो गया है …
    आपकी प्रतीक्षा है सारे हिंदी ब्लॉगजगत को …
    :)

    हार्दिक मंगलकामनाएं !
    मकर संक्रांति की अग्रिम शुभकामनाओं सहित…

    राजेन्द्र स्वर्णकार
    ◥◤◥◤◥◤◥◤◥◤◥◤◥◤◥◤◥◤◥◤◥◤◥◤◥◤


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    उत्तर
    1. बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय मैं बिल्कुल ठीक हूं, बस अब लिखना बंद कर दिया है

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  3. बेहद खूबसूरत ....क्या बात है .... बहुत सलीके की नज्म गिरी ....!!!

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  4. कभी लगा के सागर हो वो गम्भीरता का
    और कभी सिर्फ दिल्लगी सा लगा
    आपके भीतर का मौन आश्चर्य के नन्हे से
    पौधें के रूप में अंकुरित होता है
    तब यह जीवन
    कभी सच तो कभी स्वप्न की तरह आँखों के
    सामने आता हैं
    एक ही पल में सब कुछ बदल सा जाता है
    आशा ..निराशा में ,विशवास ..अविश्वास में ..
    कभी पाकर लगा उसे, पा ली कायनात सारी
    और कभी वो हाथ से रेत फिसलती सा लगा
    मन के द्वंद को आपने अच्छे से उजागर किया है
    किशोर

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  5. I am really really impressed with your writing skills as well as with the layout on your blog.

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